Poems on tree in Hindi | पेड पर कविता हिन्दी.

नमस्कार दोसतो आज हम देखेनगे पेड पर कूच मनोरंजक कविताये [Poems on tree in Hindi] जो मुझे पाता हे की आपको जरूर पसंद आयेगी | नीचे हमणे कूच कविता ये दी हे आप उन्हे पड सकते है| पेड हमरे बहुत अच्छे दोस्त होते है जो बिना किसी लालच के ऊनको हमे धन्यवाद करना चाहिये इसी लीये हम कूच कविताये लाये हे जो पेडोके महत्व को हमे समजाएगे |

पेड की पुकार

धरती की बस यही पुकार,पेड़ लगाओ बारम्बार।
आओ मिलकर कसम खाएं,अपनी धरती हरित बनाए।
धरती पर हरियाली हो,जीवन में खुशहाली हो।
पेड़ धरती की शान है,जीवन की मुस्कान है।
पेड़ पौधों को पानी दे,जीवन की यही निशानी दे।
आओ पेड़ लगाए हम,पेड़ लगाकर जग महकाकर।
जीवन सुखी बनाए हम,आओ पेड़ लगाएं हम।
-लक्ष्मी

पेड़ का दर्द

कितने प्यार से किसी नेबरसों पहले मुझे बोया थाहवा के मंद मंद झोंको नेलोरी गाकर सुलाया था।
कितना विशाल घना वृक्षआज मैं हो गया हूँफल फूलो से लदापौधे से वृक्ष हो गया हूँ।
कभी कभी मन मेंएकाएक विचार करता हूँआप सब मानवों सेएक सवाल करता हूँ।
दूसरे पेड़ों की भाँतिक्या मैं भी काटा जाऊँगाअन्य वृक्षों की भाँतिक्या मैं भी वीरगति पाउँगा।
क्यों बेरहमी से मेरे सीनेपर कुल्हाड़ी चलाते होक्यों बर्बरता से सीनेको छलनी करते हो।
मैं तो तुम्हारा सुखदुःख का साथी हूँमैं तो तुम्हारे लिएसाँसों की भाँति हूँ।
मैं तो तुम लोगों कोदेता हीं देता हूँपर बदले मेंकछ नहीं लेता हूँ।
प्राण वायु देकर तुम परकितना उपकार करता हूँफल-फूल देकर तुम्हेंभोजन देता हूँ।
दूषित हवा लेकरस्वच्छ हवा देता हूँपर बदले में कुछ नहींतुम से लेता हूँ।
ना काटो मुझेना काटो मुझेयही मेरा दर्द है।यही मेरी गुहार है।यही मेरी पुकार है।
– अंजू गोयल

वृक्ष पर कविता

प्रकृति की देन हैं वृक्ष ईश्वर का वरदान हैं वृक्ष इनसे पूर्ण जीवन होता हमारा इनसे है संसार हमारा हर किसी को समझनी होगी ये बात वृक्ष लगाने में देना होगा अपना साथ अगली पीढ़ी को क्या देकर जाओगे सोचो एक बात यह भी ,यदि वृक्ष न लगाओगे साँस भी खुलकर न ले पाएंगे अपना नही तो उनका सोचोये कदम उठाकर देखोअपने आस -पास पेड़ लगाकर देखोजीवन सुगम और स्वस्थ बनाओगे तुमखुद भी स्वस्थ और खुश दूसरोंको भी स्वस्थ और सुखी बनाओगे तुमप्रकृति की देन है वृक्ष ,ईश्वर का वरदान है वृक्ष !!

आओ मिलकर पेड़ लगाएं

आओ मिलकर पेड़ लगाएंपृथ्वी को हरा-भरा बनाए
पेड़ों के मीठे फल खाएंफूलों की सुगंध फैलाएं
पेड़ों से छाया हम पाएंचारों ओर प्राणवायु फैलाएं
मिट्टी को उपजाऊ बनाएंभूजल स्तर को यह बढ़ाएं
बारिश का पानी ये ले आएमिट्टी के कटाव को ये बचाएं
पक्षी इनपर अपना नीड़ बनाएप्रदूषण से ये हमें बचाएं
जब पेड़ों से लाभ इतना पाएंतो मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए
इन पेड़ों को क्यूं सताएइनके संरक्षण की कसम हम खाएं
आओ मिलकर पेड़ लगाएंआओ मिलकर पेड़ लगाएं…
_पूजा महावर

Tree Poem in Hindi

गुलशन मरूस्थल हो चला,है शुष्क ये सारा गगननिश्चिन्त दोषन कर रहाहै मनुज अपने में मगन
ना आज की चिंता सतातीना ही भविष्य का ज्ञान हैविज्ञान की डोरी पर दौड़ेफिर भी प्रकृति से अंजान है
प्रकृति के सब्र का बाँध भीकब तक अडिग रह पाएगाहे मूढ़ मानव कब तक तुम्हेंये बूढ़ा तरूवर बचाएगा
है खड़े तन कर ये तरूवररोष दिनकर का संभालेप्रोष में ये धरा है व्याकुलहे मनुज तरूवर बचा लो.
–अतुल कुमार सिंह

Save Tree Poetry in Hindi

कितने अच्छे पेड़ हमारेघनी छांह हमको देते हैंऊँचे होते सुंदर लगतेहरा भरा मन कर देते हैंशाख हिला कर हमें बुलातेनित्य निमंत्रण देते रहतेचिड़ियाँ गाती फुदक-फुदक करउनको खेल खिलाते रहतेपहले फूल खिलाते जी भरफल भी हमको दे देतेखट्टे मीठे और रसीलेसभी स्वाद के हैं वे होतेफल पक जाते ही झुक जातेविनम्रता का पाठ पढ़ातेवर्षा लाते ठीक समय परप्रयावरण पवित्र बनातेइन्हें काटना नहीं कभी भीये तो सबके प्यारे हैंझूलों की शोभा बन जातेगीत सुनाने वाले हैं।–सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

Tree Poem in Hindi

इधर कविताओं में कम पड़ते जा रहे है पेड़कम होती जा रही पेडों पर लिखी कविताएँ
पेडों को दु:ख है किउस कवि ने भी कभी अपनी कविताओं मेंउसका जिक्र नहीं कियाजो हर रोज़ उसकी छाया में बैठलिखता रहा देश-दुनिया पर अपनी कविताएँ
पेडों को दु:ख है किउस हाथ ने काटे उसके हाथजिस हाथ ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाएऔर मारे उसने उसके सिर पर पत्थरजिसको अक़्सर अपनी बाँहों में झूलातादेता रहा अपनी मिठास
दु:खी हैं पेड़ किउस हाथ ने किए उसके हाथ ज़ख़्मीजिसके ज़ख़्मी हाथों पर मरहम का लेप बनसोखता रहा वह उसकी पीड़ा
पेड़ दुखी है किउनका दु:ख कहीं दर्ज नहीं होताऔर न ही अख़बारों में आदमी की तरहछपती हैं उसकी हत्या की खबरें !
दु:खी है पेड़ किसब दिन सबका दु;ख बाँटने के बावजूदआज उसका दु:ख कोई नहीं बाँटता !
यहाँ तक कि उसकी छाया में बैठकरवर्षों पंचायती करने वालों ने भीकभी उनकी पंचायती नहीं की !–अशोक सिंह

Ped Par Kavita

एक ऐसे समय मेंजब पेड़ आदमी नहीं हो सकतेऔर न ही आदमी पेड़
पेड़ आदमी से पूछना चाहते हैंविनम्रता से एक बात कि —अगर उसकी जगह आदमी होताऔर आदमी की जगह वहतो आज उस पर क्या बीत रही होती ?
कहो न ! चुप क्यों हो ?क्या बीत रही होती तुम परअगर आदमी के बजाय तुम पेड़ होते ?–अशोक सिंह

सच्चा अनुभव

ये जो कविता है वो सच्चे अनुभव के आधार पर लिखी है ।
तो इसके ऊपर आपके जो कॉमेंट्स है वो अवश्य लिखें ।
तो चलिए, हम आज के कविता का पाठ शुरू करते है ।
सच्चा अनुभव
सच्चा अनुभव कहते हैं,
वृक्ष देवता होते है ।
बचपन से जिन्हें देखा हमने,
जिनकी गोद में खेला हमने ।
घनी छाँव में बैठे हम,
दिल का सुकून पाए हम।
ऐसे वृक्ष महान होते है,
हर धर्म में गुणगान होते है ।
वृक्ष देवता होते है,
सच्चा अनुभव कहते है ।
आस्तिक हो या नास्तिक हो,
सबको देते समसमान ।
आस्तिक हो या नास्तिक हो, सबको देते समसमान ।
गिरते हुए भी ये वृक्ष,
बहुत कुछ दे जाते है ।
कभी फल, कभी फूल,
कभी पत्ते, कभी खुशबू ।
कहीं लकडी, तो कहीं यादें,
कितनी सारी अनगिनत,
कुछ सुनी, कुछ अनसुनी ।
कितने घौंसले, कितने घरौंदे,
वृक्ष बना देते हैं ।
हर जीव की सेवा में,
जी जान लुटा देते है ।
फल की उत्पत्ति होती है,
तो ब्रह्मा जी दिखते है ।
प्राणवायु प्रदान करते,
भगवान विष्णु दिखते है ।
कार्बन वायु का जहर पिते,
महादेव का स्मरण कराते ।
इसलिए वृक्ष भगवान होते है,
सच्चा अनुभव हम कहते हैं ।
श्रेष्ठ कर्म है वृक्ष लगाना,
सेवा में वृक्ष धर्म निभाना ।
ऐसे वृक्ष से जब मिलता हूँ,
कुछ वो कहता है, कुछ मैं कहता हूँ ।
अमेरिका में एक जगह,
एक वृक्ष शान से खड़ा था ।
हमनें Hi Hello किया,
तो वो भी थोडा हँस दिया ।
हमने कहा फोटो खिचना है,
उसने कहा ये क्या पुछना है ?
सुंदर फोटो खिच लिया,
फिर उसे bye bye किया ।
घर आए तो देखा फोटो,
बहुत अच्छा निकला था ।
फोटो में सूरज तेजःपुंज,
लेकिन एक बैंगनी प्रकाशपुंज ।
देखकर हम अचंभित थे,
पेड़ पर तो ये नहीं थे ।
देखकर हम अचंभित थे,
पेड़ पर तो ये नहीं थे ।
कहाँ से आया प्रकाशपुंज था ?
कडी धूप में चमक रहा था ।
मानो उसकी अपनी ऊर्जा हो,
अपना ही दिव्य तेज हो ।
एक अचंभा और हुआ,
जब हमने zoom किया ।
प्रकाशपुंज से एक चेहरा,
मानो हमें देख रहा था ।
प्रकाशपुंज से एक चेहरा,
मानो हमें देख रहा था ।
स्थिति सोच के बाहर थी,
अघटित घटना हुई थी ।
विज्ञान जहा खतम होता है,
अध्यात्म वहा शुरू होता है ।
सच्चा अनुभव कहता हूँ,
आराध्य वृक्ष दिखाता हूँ ।
अंधविश्वास नहीं फैलाना,
सत्य की खोज में है चलना ।
फोटो देखो दिल से सोचो,
किसका चेहरा जरूर बताओ ।
तब तक हम जयकार करते है,
निसर्गदत्त को प्रणाम करते है ।
आपको प्रणाम करते है ।
धन्यवाद ।

कितने प्यार से किसी ने, बरसों पहले मुझे बोया थाहवा के मंद मंद झोंको ने, मुझे प्यार से संजोया था ।
कितना बड़ा घना वृक्ष, आज मैं हो गया हूँफल फूलो से लदा, पौधे से वृक्ष हो गया हूँ ।
कभी कभी मन में, एकाएक विचार करता हूँ Iआप सब मानवों से, मैं एक सवाल करता हूँ ।
दूसरे पेड़ों की भाँति, क्या मैं भी काटा जाऊँगा ?दूसरे वृक्षों की भाँति, क्या मैं वीरगति को पाउँगा ।
क्यों बेरहमी से मेरे सीने पर कुल्हाड़ी चलाते हो Iक्यों बेरहमी से मेरे सीने को छलनी कर जाते हो ।
मैं तो तुम्हारा सुख-दुःख का साथी हूँमैं तो तुम्हारे लिए साँसों की भाँति हूँ।
मैं तो तुम लोगों को, देता हीं देता हूँपर बदले में, कछ नहीं लेता हूँ ।
प्राण वायु देकर तुम पर,कितना उपकार करता हूँ
फल-फूल देकर तुम्हें भोजन देता हूँ,दूषित हवा लेकर स्वच्छ हवा देता हूँ
ना काटो मुझे, ना काटो मुझेयही मेरा दर्द है।
यही मेरी गुहार है।यही मेरी पुकार है।
अगर आपको ये कविताये पसंद आती हे तो हमे जरूर कमेन्ट के माध्यम से बताये अगर आपकी कोई query हे तो भी आप हमे बता सकते है और अगर आप इस कविता के असली लेखक है और आप इस कविता को हटवाणा चाहते है तो हमे कमेन्ट मे या हमे ईमेल भी कर सकते है |

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